*NOBEL PRIZE WINNING POEM*
*नित जीवन के संघर्षों से*
*जब टूट चुका हो अन्तर्मन,*
*तब सुख के मिले समन्दर का*
*रह जाता कोई अर्थ नहीं ।।*
*जब फसल सूख कर जल के बिन*
*तिनका -तिनका बन गिर जाये,*
*फिर होने वाली वर्षा का*
*रह जाता कोई अर्थ नहीं ।।*
*सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन*
*यदि दुःख में साथ न दें अपना,*
*फिर सुख में उन सम्बन्धों का*
*रह जाता कोई अर्थ नहीं ।।*
*छोटी-छोटी खुशियों के क्षण*
*निकले जाते हैं रोज़ जहां,*
*फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का*
*रह जाता कोई अर्थ नहीं ।।*
*मन कटुवाणी से आहत हो*
*भीतर तक छलनी हो जाये,*
*फिर बाद कहे प्रिय वचनों का*
*रह जाता कोई अर्थ नहीं।।*
*सुख-साधन चाहे जितने हों*
*पर काया रोगों का घर हो,*
*फिर उन अगनित सुविधाओं का*
*रह जाता कोई अर्थ नहीं।।* ...!!
*- मार्था मेरिडोस* (ब्राज़ील)
( *कवियित्री की इसी कविता के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ*)
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