आए दिन डॉक्टरों को कूटने वाली भारत की "भोत समझदार" जनता के लिए कुछ भोत इम्पोर्टेन्ट जानकारियाँ...
1. भारत में दस हज़ार लोगों के लिए एक डॉक्टर उपलब्ध है।
विश्व मानकों के अनुसार एक हज़ार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिये।
2. भारत की सरकार जीडीपी का सिर्फ़ 1.02 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्च करती है। ये ख़र्च एशियाई देशों में सबसे कम है। भूटान लगभग 2.5 प्रतिशत और अमेरिका लगभग 18-19 प्रतिशत ख़र्च करता है।
3. इसके बाद भी भारत में इलाज़ करवाना तमाम विकसित देशों से सस्ता है, और फिर भी सबसे अच्छा है।
4. कॉरपोरेट हॉस्पिटल बड़े बिज़नेसमेन या बिज़नेस ग्रुपों द्वारा चलाए जाते हैं, डॉक्टरों द्वारा नहीं।
5. सरकारी अस्पताल में बेड्स, दवाइयाँ, मेन पॉवर और अन्य ज़रूरी सुविधाओं की व्यवस्था करना सरकार की ज़िम्मेदारी होती है। ये डॉक्टरों के हाथ में नहीं होता।
6. छोटे प्राइवेट अस्पतालों का ख़र्च किसी भी तरह मरीज़ों द्वारा दी गई फ़ीस से नहीं चल सकता। छोटे अस्पताल लैब और फार्मेसी पर मिलने वाले मार्जिन से ही चल पाते हैं, और जनता को कम से कम ख़र्च में आवश्यक सुविधाएं दे पाते हैं।
7. छोटे अस्पतालों को सरकार से कोई मदद नहीं मिलती। अग़र लैब और फार्मेसी का मार्जिन नहीं होगा, तो अस्पताल बंद हो जाएगा।
8. भारत के किसी भी हॉस्पिटल में किसी पर्टिक्यूलर मेडिकल कंडीशन के लिए किए जाने वाले टेस्टों की संख्या, उस कंडीशन के लिए इंटरनेशनली रेकमेंडेड टेस्टों की संख्या से बहुत कम होती है। भारत के डॉक्टर डायग्नोसिस के लिए अधिकतर अपनी क्लीनिकल स्किल्स पर भरोसा करते हैं और वास्तव में मरीज़ का पैसा बचाते हैं।
9. दवाइयों के दाम दवा कंपनियां तय करती हैं। दवा कंपनियों को लाइसेंस सरकार देती है, डॉक्टर नहीं।
10. सरकार द्वारा मंज़ूर की गई दवा कंपनी की दवा लिखना किसी भी तरह से ग़ैर कानूनी नहीं हो सकता।
11. सरकार अग़र जेनेरिक दवाइयों को प्रोमोट करना चाहे, तो वो ब्रांडेड दवा कंपनियों का लाइसेंस रद्द कर केवल जेनेरिक दवा बनाने का लाइसेंस दे सकती है। सरकार ब्रांडेड दवाओं का दाम भी रेगुलेट कर सकती है।
12. मरीज़ को अग़र डॉक्टर द्वारा लिखी गई ब्रांडेड दवा महंगी लगे, तो वो उसकी जगह मेडिकल स्टोर वाले से उसी कंटेंट की जेनेरिक या अन्य सस्ते ब्रांड की दवा मांग सकता है। मेडिकल स्टोर में इसीलिये एक फार्मासिस्ट होता है।
13. किसी भी अस्पताल में "ग़लत इंजेक्शन" नाम की कोई दवा नहीं होती।
14. मनुष्य का शरीर बहुत कॉम्प्लेक्स होता है। एक ही बीमारी से पीड़ित दस मरीज, एक ही दवा के प्रति दस अलग अलग रेस्पोंस दे सकते हैं।
15. गूगल पर दस मिनट के कठोर अध्ययन से प्राप्त किया "मेडिकल ज्ञान", एक डॉक्टर द्वारा बीस साल में प्राप्त किये ज्ञान और अनुभव की बराबरी कभी भी नहीं कर सकता।
16. वेंटीलेटर मृत व्यक्ति को जीवित नहीं करता। कोई भी डॉक्टर किसी भी डेड पेशेंट को वेंटीलेटर पर रखने की मूर्खता कभी नहीं कर सकता, क्योंकि मृत्यु के कुछ ही देर में बॉडी लकड़ी की तरह अकड़ जाती है।
17. आप किसी भी डॉक्टर को कूट कर उसकी डॉक्टरी क्षमता या इंटेलिजेंस को नहीं बढ़ा सकते, ना ही मृत पेशेंट को जीवित कर सकते हैं।
18. डॉक्टर वही सिम्पटम समझ सकता है, जो उसने मेडिकल की किताबों में पढ़ा हुआ है। सिम्पटम को ज़्यादा एक्सप्लेन करने या अस्पष्ट टर्मिनोलॉजी (जैसे अजीब सा लगना, सुरसुराना, कुट कुट करना, टनटनाना, कुछ होना जैसे शब्द) का प्रयोग करने से डॉक्टर को डायग्नोसिस में कोई हेल्प नहीं मिलती।
19. डॉक्टर को जितना नॉलेज और अनुभव होगा, उसी हिसाब से वो इलाज़ करेगा। ना उससे कम, ना उससे ज़्यादा।
डॉक्टर से ज़्यादा सवाल पूछने, या उसके पीछे पड़ने, या उसे पीटने से उसके ज्ञान या अनुभव में वृद्धि नहीं होती, ना ही उसका ट्रीटमेंट अच्छा होता है।
20. भारत में छोटे प्राइवेट क्लीनिकों और अस्पतालों ने एक बहुत बड़े पैमाने पर सस्ती स्वास्थ्य सेवा मुहैय्या कराने का ज़िम्मा संभाला हुआ है। मेडिकल फील्ड में सरकार द्वारा लागू किये जा रहे अव्यवहारिक कानूनों, मानकों, डॉक्टरों के साथ बढ़ती मारपीट की घटनाओं और उनके प्रति सरकार की अनदेखी से इन छोटे क्लिनिक और अस्पतालों को सर्वाइवल अब मुश्किल होता जा रहा है। वो धीरे धीरे बंद हो रहे हैं। कॉरपोरेट अस्पताल बढ़ते जा रहे हैं, जहाँ इलाज़ महंगा है। डॉक्टरों से मारपीट कर देश की समझदार जनता ख़ुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है।
21. अपने साथ बढ़ती मारपीट और बढ़ते हुए फालतू लीगल केसेस की वज़ह से डॉक्टर अब सीरियस मरीज़ों को लेना कम कर रहे हैं, और उन्हें आगे बड़े अस्पतालों को रैफर कर रहे हैं, जहाँ इलाज़ और भी महंगा है।
22. मेडिकल फील्ड में बढ़ती असुरक्षा को देखते हुए आने वाले सालों में प्रतिभाशाली बच्चे डॉक्टर नहीं बनना चाहेंगे। इस फील्ड में अब नेताओं और व्यापारियों के बच्चे डोनेशन दे कर आएंगे, मेरिट से नहीं।
23. आगामी पंद्रह-बीस सालों में भारत की "भोत समझदार" जनता को तैयार रहना चाहिये इन डोनेशन या ब्रिज कोर्स से बने डॉक्टरों का स्वागत करने और उनसे इलाज़ करवाने के लिए।
या फिर "अंजना ओम कश्यप" से भी इलाज़ करवा सकते हैं..
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