ढाबों का NABH
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पार्ट १
-डॉ राज शेखर यादव
M.D(Med)
किसी शहर में एक बहुत बड़ा 5 सितारा होटल था,नाम था होटल शिल्टन।उसी शहर में बहुत से छोटे -छोटे ढाबे भी थे। ढाबों पर ac नही होता था,फर्नीचर भी सामान्य सा होता था ।वेटर लोग भी अडोस पड़ोस के गांवों के लड़के होते थे।न उनका कोई ड्रेस -कोड था न उन्हें यस मैम, यस सर कहने का सलीका था। पर दो बातें थी जिनकी वजह से शहर के ढाबे उस 5स्टार होटल से ज्यादा चलते थे।एक तो उनका खाना बहुत स्वादिष्ट होता था क्योंकि अधिकांश मालिक खुद कुक करते थे और रॉ मटेरियल ताज़ा होता था,दूसरा वो 5 सितारा होटल से करीब 10 गुना सस्ते भी थे।
तभी सरकार ने गरीबों के लिए एक मुफ्त भोजन योजना लांच की।योजना कुछ यों थी कि गरीब आदमी किसी भी ढाबे या होटल में जाए ,जो जी मे आये पेट भर खाये और मुस्कुराते हुए बाहर आ जाए। खाने का बिल सरकार भरेगी ।राज्य के 5 सितारा होटल मालिकों की लॉबी बड़ी स्ट्रांग थी।उन्होंने ढाबों को इस योजना से बाहर रखने के लिए सरकार को कुछ सख्त मानक तय करने के लिए राजी कर लिया।तय किया गया कि ढाबों को सरकारी मान्यता तभी मिलेगी जब कोई ढाबा या होटल उन सभी मानकों को पूरा करे और एक गैर सरकारी संस्था से क्वालिटी का सर्टिफिकेट ले जिसका नाम था NABH(नेशनल अक्रेडिटेशन बोर्ड फ़ॉर होटल्स एंड फ़ूड प्रोवाइडर्स)।NABH के मानक कुछ इस तरह बनाये गए कि प्रयास था कि अधिकांश ढाबे उन मानकों पर खरे न उतर पाएं जिस से ढाबों का सारा बिज़नेस 5 सितारा होटल्स को मिलने लगे।
शुरू में कुछ ढाबे वालों ने इन मानकों का विरोध भी किया लेकिन कुछ दूसरे नई सोच वाले ढाबे थे जो nabh की प्रक्रिया में लग गए।देखा देखी सभी ढाबे वालों को भी ऐसा करना पड़ा।nabh के मानक ऎसे थे कि कम पढ़े लिखे ढाबे वाले उन्हें समझ नही पा रहे थे कि इन्हें कैसे पूरा करें।सम्पूर्ण राज्य के ढाबे वाले परेशान थे तो उनकी परेशानी में कुछ स्मार्ट एजेंसीज को बिज़नेस नज़र आया ।उन्होंने ढाबे वालों को कहा आप हमें 2-2लाख रुपये दो हम आपको nabh accreditation दिलवाएंगे।अधिकांश ढाबे वाले मान गए,मरते क्या न करते।
अब एजेंसीज का खेल शुरू हुआ।
उन्होंने ढाबे वालों को बताया "देखो, आपको भोजन बिल्कुल वैसे ही बनाना है जैसे पहले बना रहे थे,उसमे कुछ नही बदलना पर सब कुछ दिखना अच्छा चाहिए।"
सभी वेटर्स के लिए ड्रेस कोड बनाया गया।अंग्रेज़ी न बोल पाने वाले वेटर्स को निकाल कर नई भर्ती हुई।इंग्लिश बोल सकने वाले नए महंगे वेटर्स लाये गए।ढाबों का सारा फर्नीचर हटा कर महंगा नया फर्नीचर लगवाया गया।कच्चे फर्श की जगह महंगी टाइल्स लगवा दी गई।पंखे हटा कर ac लगवा दिए गए।वाशबेसिन,टॉयलेट फिटिंग ,इलेक्ट्रिक फिटिंग चेंज की गई,false सीलिंग से पुरानी छतों को छुपा दिया गया,नया रंग रोगन हुआ।नए स्टाइलिश मेनू कार्ड छपवाए गए। ढाबों के बाहर सुंदर सुंदर glowsign बोर्ड लगवाए गए।दरवाज़े खिड़कियां सब बदलवा दिए गए।खाने की क्वालिटी पहले भी ठीक ही थी उसमें कोई खास बदलाव नही किया गया बस आटा ,तेल मसाले जंहा से आ रहे थे उन सभी दुकानों से एग्रीमेंट किया गयाऔर हर रॉ मटेरियल का हिसाब किताब प्रॉपर रखने को कहा गया।
इस सारी कवायत का नतीजा ये हुआ कि हर ढाबे वाले के 15-20लाख रूपय खर्च हो गए।मासिक खर्चे भी अब पहले के मुकाबले 3 गुना हो गए पर ढाबे वाले बहुत खुश थे कि nabh अब मिल ही जायेगा और फिर धंधा अच्छा चलेगा।
लेकिन इसका एक नुकसान ये हुआ कि ढाबों की रनिंग कॉस्ट बढ़ने के कारण उन्हें अपने चार्जेज 2से 3 गुना बढ़ाने पड़े।लिहाज़ा वो कैश वाले कस्टमर्स जो ढाबों के कम रेट्स की वजह से वहां आते थे वो आना बंद हो गए।
ढाबे वालों ने ये सोच कर दिल को तसल्ली दी कि nabh मिलने के बाद कैशलेस कस्टमर्स इतने अधिक आएंगे कि इस नुकसान की भरपाई हो जाएगी।कुछ दिनों में एजेंसी की मदद से सभी ढाबों को nabh मिल गया।सप्ताह बीत गया, फिर महीना भी गुजर गया पर कैशलेस योजना वाले कस्टमर् दूर दूर तक नज़र नही आये।ढाबे वालों ने मीटिंग की।फैसला हुआ कि कैशलेस कस्टमर्स को बुला कर उन्ही से पूछा जाए कि अब तो हम ढाबे वाले भी सरकार की कैशलेस योजना से सम्बद्ध nabh approved ढाबे है आप हमारे यंहा भोजन करने क्यों नही नही आते।
कैशलेस कस्टमर्स आये और उनका कहना था कि हमे तो भोजन दोनों जगह मुफ्त ही मिलना है फिर क्यों न 5 सितारा होटल के खाने का मज़ा लूटा जाए।
तुम ढाबे वाले रंग पेंट करवा कर 5सितारा थोड़े ही बन गए।तुम्हारी हालत तो कुछ इस तरह की की है कि" कौवा चला हंस की चाल ,खुद की चाल भी भूल गया।"
क्रमश:
-डॉ राज शेखर यादव
M.D.(Med)
Reality of NABH
(This post is dedicated to owners of small hospitals and nursing homes )
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