यदि कोई पुलिसवाला किसी आतंकी का मुकाबला एक लाठी से करता दिखे और अंत मे उस आतंकी को मार भी गिराए तो आप पुलिस वाले को कोसेंगे या उसे शाबाशी देंगे? कोई भी सामान्य IQ वाला इंसान पुलिस वाले के अदम्य साहस की दिल खोल कर तारीफ करेगा और सरकार को पुलिस के लिए आवश्यक संसाधन न जुटा पाने के लिए दोषी मानेगा।
कल एक प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल के ट्विटर हैंडल पर न्यूज़ हैडलाइन थी" सरकारी अस्पताल में डॉक्टर्स की लापरवाही,टोर्च की रोशनी में कर दिया आपरेशन"।
डॉक्टर्स के खिलाफ समाज मे जहर भरने का जो काम मीडिया ने पिछले कुछ दशकों में किया है उसके लिए मीडिया को कभी माफ नही किया जा सकता है।जिन चीजों पर डॉक्टर्स का कोई नियंत्रण नही उसके लिए भी यदि दोष डॉक्टर्स को दिया जाए तो इस से बड़ी त्रासदी कोई दूसरी नही हो सकती।डॉक्टर और मरीज़ के विश्वास के रिश्ते की धज्जियां उड़ाने में सबसे बड़ा योगदान मीडिया का है,यदि ये कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नही होगी।
दवाओं की mrp ज्यादा है तो डॉक्टर दोषी,सर्जिकल आइटम्स पर प्रॉफिट मार्जिन ज्यादा है तो डॉक्टर दोषी, सरकारीअस्पतालों में आवश्यक संसाधन नही तो डॉक्टर दोषी,सरकारी अस्पतालों में भारी भीड़ है तो डॉक्टर दोषी,कॉर्पोरेट अस्पतालों का बिल लंबा चौड़ा है तो डॉक्टर दोषी,मृत व्यक्ति में प्राण न फूंक पाए तो डॉक्टर दोषी,प्रसूता का हीमोग्लोबिन कम है और वो pph से मर जाये तो भी डॉक्टर दोषी।मानो डॉक्टर नही हम पंचिंग बैग हैं।आज तक ,शायद ही कभी देश के मीडिया ने स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के लिए देश की सरकार से सवाल पूछे होंगे। सिर्फ डॉक्टर्स को गालियां देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं ये लोग।मीडिया की ये बीमारी अब सोशल मीडिया पर पहुच चुकी है जंहा पान की दुकान वाला पप्पू भी डॉक्टर्स को ज्ञान देने से नही चूकता ।
कल ही एक और खबर थी जिसमे बताया गया था कि कैसे देश के 72 हजार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टर्स और स्टाफ के लिए टॉयलेट तक की सुविधा नही है।
हम हिंदुस्तानी डॉक्टर्स ने बेहद सीमित संसाधनों और घोर विकट परिस्थितियों के बावजूद न केवल देश के मैंगो मैन को उम्दा स्वास्थ्य सेवाएं दी हैं बल्कि हिंदुस्तान को मेडिकल टूरिज्म का हब भी बनाया है।ये हमारी मेहनत का ही नतीजा है कि पिछले 70 सालों में आम हिंदुस्तानी की औसत आयु दोगुना हो गई है,मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में जबरदस्त सुधार भी डॉक्टर्स के प्रयासों का ही नतीजा है।मिडिल ईस्ट में रहने वाले भारतीय जब बीमार होते हैं तो इलाज के लिए हिंदुस्तान दौड़ते है।इसलिए कि यहाँ इलाज सस्ता भी होता है और अच्छा भी।
तो प्यारे हिंदुस्तानियों ,स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी हर खामी के लिए डॉक्टर्स को गाली देना बंद कीजिए और जो मिल रहा है उसकी कद्र कीजिये।स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े अधिकांश विषयों पर हम डॉक्टर्स का कोई नियंत्रण नही होता बिल्कुल उस पायलट की तरह जिसका काम जहाज को उड़ाना मात्र होता है।यात्रा का किरया कितना होगा,विमान में क्या सुविधाएं होंगी, विमान में सर्व की गई चाय ,कॉफ़ी,भोजन की कीमत क्या होगी ये विमान कंपनी तय करती है पायलट नही।
બુધવાર, 4 ડિસેમ્બર, 2019
Indian doctor and media
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