डॉक्टर्स और डॉक्टर्स संगठन इतने कमजोर क्यों है ; क्यों कोई भी इनके मान सम्मान की परवाह नहीं करता , मारपीट अपमान मानहानि से नहीं चूकता , सब मिलाकर आर्थिक ,
मानसिक सामाजिक शोषण , आइये विस्तार में महत्वपूर्ण विवेचना करते हैं कि पिछले 75 वर्षों में क्या गलतियां हुई है 🙏
संगठन में शक्ति होती है परंतु बिना संवैधानिक शक्ति के संगठन खरगोश ,भेड़ बकरी के समूह से अधिक नहीं होता , जिनको कोई भी शिकार कर सकता है ,
लोकतंत्र में अधिकार , सुरक्षा , सम्मान & शक्ति का केंद्र है -भारत का संविधान ; जिसके 4 आधारभूत स्तम्भ है :-
1. विधायिका
2.कार्यपालिका
3.न्यायपालिका
4.मीडिया
विधायिका अर्थात माननीय विधायक ( MLA ,MLC ) माननीय राज्यसभा सांसद & माननीय लोकसभा सांसद ,
संविधान में व्यवस्था है कि बॉलीवुड & सपोर्ट्स के प्रतिनिधि के रूप में राज्यसभा में सांसद मनोनीत ( नॉमिनेशन) किये जाते हैं , जो अपने फील्ड की समस्याओं के समाधान के लिए विधान परिषद ,राज्यसभा के पटल पर चर्चा के लिए मुद्दे रखते हैं , सचिन तेंदुलकर ,रेखा को राज्यसभा सांसद के रूप में हम सभी जानते हैं , क्या MCI या IMA या अन्य किसी मेडिको संगठन ने अपना राज्यसभा सांसद , MLC बनाने की माँग की ???
शिक्षक MLC की तरह हमारा चिकित्सक MLC होते ; जो चिकित्सकों से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए मुद्दों को विधान परिषद के पटल पर रखते ,
ऐसे ही कला और खेल के राज्यसभा सांसद की तरह चिकित्सक सांसद होते तो राज्यसभा के पटल पर चिकित्सकों के मुद्दे रखते , क्रिकेटर & फ़िल्म स्टार की तरह चिकित्सकों को भी नेशनल अवार्ड , भारत रत्न ,पदम् विभूषण , पदम् भूषण , पद्मश्री आदि पुरुस्कार मिल रहे होते , 26 जनवरी ,15 अगस्त पर सम्मानित हो रहे होते ,
इस गलतफहमी में न रहे कि डॉक्टर्स भी तो विधायक या सांसद बनते है वह भी हमारे समस्याओं को नहीं रखते , तो भाई वह डॉक्टर के रूप में संसद में मनोनीत होकर नहीं गए , वह डॉक्टर से पहले अपनी पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता है , इसलिए वह अपनी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर गए हैं तो वह पार्टी लाईन से बाहर क्यों जायेंगे , वह चिकित्सकों की समस्याओं को सदन के पटल पर क्यों रखेंगे ??.
कार्यपालिका अर्थात -IAS , IPS , IFS के पास संवैधानिक शक्ति होती है , क्या MCI या IMA ने IMS ( इंडियन मेडिकल सर्विस ) के पद को बनवाने का प्रयास किया , IMS जो डॉक्टर होना चाहिए और सिर्फ वही स्वास्थ्य & चिकित्सा की नीतियां बनाये , जैसे ISRO की नीतियां वैज्ञानिक बनाते हैं जबकि मेडिकल की पॉलिसी नॉन मेडिको बनाते हैं ,
इसी तरह पुलिस विभाग , प्रशासनिक विभाग के प्रादेशिक स्तर से अधिकारी IPS ,IAS में प्रोमोट हो जाते हैं , परंतु मेडिकल ऑफिसर के लिए MCI या IMA ने IMS ( इंडियन मेडिकल सर्विस ) बनाने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया , यदि आज IMS अधिकारी होते तो उनको चिकित्सकों की मूलभूत समस्याओं को केंद्र में रखकर नीतियाँ बनती , आज RTH के लिए विरोध में सड़कों पर नहीं उतरना पड़ता ,
न्यायपालिका - प्रादेशिक सेवाओ के हाईकोर्ट के माननीय न्यायमूर्ति के पास भी केंद्रीय सेवाओं ( सुप्रीमकोर्ट )में जाने का विकल्प हैं ,परंतु MCI और IMA ने क्या कभी प्रदेश के चिकित्सा अधिकारियों को सुदृण करने की कोशिश की , IMS बनवाने का पर्यास किया , जिससे माननीय न्यायमूर्तियों की तरह मेडिकल कैडर भी संगठित हो ,
चिकित्सक संगठित भी नहीं है - संघ शक्ति कलियुगे के धेय्य वाक्य के अर्थ को नहीं समझ पाये जबकि एडवोकेट जो संवैधानिक शक्तियों को बहुत अच्छे से समझते है ; शक्ति के इस मंत्र को समझ गए ,
जिस तरह से हमारी MCI थी उसी तरह से भारत भर के वकीलों की अखिल भारतीय एसोसिएशन " बार कॉउन्सिल " होती है , देश भर के वकीलों के मुद्दे , समस्या & सुविधाओं के लिए बार कॉउन्सिल गम्भीर होती है , प्रत्येक पटल पर वकीलों के मुद्दों को उठाती है , सुप्रीम कोर्ट के वकीलों से डिस्ट्रिक्ट तक के वकील साहब एक साथ होते हैं ,
जबकि डॉक्टर्स की न जाने कितने पालनहार है , MCI ( एनएमसी), IMA , मूल निवासी मेडिकल एसोसिएशन , अलग अलग प्रान्तों के सरकारी डॉक्टर्स की एसोसिएशन , JR , SR मेडिकल फैकल्टी एसोसिएशन , AIIMS एसोसिएशन , PGI डॉक्टर्स एसोसिएशन , अलग-2 स्पेशलिटी की स्वतंत्र एसोसिएशन , UPSC से चयनित डॉक्टर्स की एसोसिएशन , रेलवे डॉक्टर्स की एसोसिएशन , जाति आधारित मेडिको एसोसिएशन , सम्प्रदाय आधारित मेडिकल एसोसिएशन आदि , 2004 से पहले OPS वाले , 2005 के बाद NPS वाले , प्राइवेट ,सरकारी , विदेश ,अलग अलग मेडिकल कॉलेज आदि की ग्रुपबाजी आदि आदि और भी न जाने कौन -2 से मुद्दों पर हम राजतंत्र के सामन्तो की तरह बंटे हुए हैं ,
वकीलों की बार कॉउन्सिल की तरह चिकित्सकों के मुद्दे MCI की जिम्मेदारी होनी चाहिए थी , परंतु आज प्राइवेट एसोसिएशन IMA चिकित्सकों का फेस है ,न कि MCI ,स्टेट मेडिकल काउंसिल , MCI को गलतफहमी थी कि हम तो ऑटोनोमस बॉडी है ,संवैधानिक संस्था है ,हमारा कोई क्या बिगाड़ सकता है , यदि संविधान पढ़ा होता तो समझ जाते कि MCI को संसद द्वारा निर्धारित प्रक्रिया सेखत्म किया जा सकता है ,
बार कॉउन्सिल की तरह चिकित्सा जगत की माँ MCI की सोच दूरदर्शी नहीं थी , MCI की पॉलिसी की प्राथमिकता में था ही नहीं कि हम प्रशासनिक पदों में लिए उपयोगी बने , संवैधानिक शक्तियों को धारण कर शक्तिशाली बने ,
MCI की पॉलिसी थी E=E , Education =Economy , अर्थात सिर्फ धन कमाओ लेकिन राजा मत बनो अर्थात संवैधानिक शक्ति अर्जित मत करो , सिर्फ टेक्निकल स्किल्ड वर्कर बन कर रहो , तभी तो IAS ,IPS ,IFS की तरह हमारा IMS कैडर नहीं है , सरकारी चिकित्सा अधिकारी पद को आकर्षित नहीं बना पाये , अब तो सरकारी मेडिकल कॉलेज में फैक्लटी के रूप में भी चिकित्सक सेवा नहीं देना चाहते ,
MCI खत्म हो गई तो अच्छा ही हुआ क्योंकि MCI ने डॉक्टर्स को शक्तिहीन टेक्निकल स्किल्ड वर्कर के रूप में तैयार किया है , मेडिको के कोई मूलभूत अधिकार & सुविधाएं नहीं , मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट्स की मूलभूत समस्याओं से लेकर ग्रामीण भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृण करने का कोई बेहतरीन विजिन नहीं था , तभी तो प्राइवेट मेडिकल कॉलेज लगातार बढ़ते गये , अधिकांश सीट प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में हो गई , मेडिकल एजुकेशन बहुत महँगी होती चली गई ,
कईयों को लगता है कि चिकित्सक धन कमाने में लगे रहे तो दोस्तों कभी भी ध्यान से देखना कि प्रशासनिक अधिकारियों , एडवोकेट , मीडिया ,राजनेताओं से अधिक धन सम्पत्ति , बंगले , शक्ति, सम्मान ,रुतवा ,सुविधाएं क्या चिकित्सकों के पास है ????
पिछले 75 वर्षों से संविधान की बेसिक नॉलेज सभी चिकित्सकों के पास होनी चाहिए थी ; जोकि *MCI ने दूरदर्शिता की कमी* की वजह से चिकित्सकों के पास नहीं है , MCI ने चिकित्सकों को अधिकारी वर्ग ,शक्तिशाली & संगठित बनाने का ईमानदार प्रयास नही किया , MCI प्राइवेट सेक्टर & विदेशों के हिसाब से चिकित्सक तैयार करता रहा , इसमें उसे कामयाबी भी मिली , तभी तो आज सरकारी अस्पताल ,सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों की कमी है , बिड मॉडल पर चिकित्सकों की बोली लग रही है , चिकित्सा अधिकारी पद भी संविदा हो गया , क्या कोई राजपत्रित प्रशासनिक अधिकारी , मा. न्यायमूर्ति पद संविदा होता है ?
भारत की 70 % आबादी ग्रामीण स्तर पर है , राजनैतिक पार्टियों को वोट भी सबसे अधिक यही से मिलता है , और हमारी MCI इस बात को नहीं समझ पाई , यदि MCI के पास ग्राउंड लेवल की समझदारी होती तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्पेशलिस्ट सुविधाओं को सुदृण करने के लिए & चिकित्सकों को सेवा में आने के लिएकोई ठोस ब्लू प्रिंट तैयार करती , जिससे चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण केंद्र होते ,तो माननीय नेताजी भी आपको पलको पर बिठाकर रखते ,
परंतु MCI ने 75 वर्षों में जो मानसिकता सेट की है उसी का नतीजा है कि चिकित्सकों में आज भी संविधान की शक्तियों वाली व्यवस्था का हिस्सा बनने के प्रति अवेयरनेस नहीं है , क्योंकि हम अपने सीनियर्स को फॉलो करते हैं , तभी तो सिविल सर्जन से सीएमओ तक आ गए , फ़ूड इंस्पेक्टर एवं ड्रग इंस्पेक्टर पद हमारे विभाग से चले गये , पहले जिला जज और सिविल सर्जन जनपद में सुप्रीम पॉवर होती थी , परंतु आज सीएमओ साहब क्या है प्रशासन में यह किसी से छुपा नहीं है , अब तो स्वशासी मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य तक डीएम साहब की मीटिंग में डीएम साहब से या उनके प्रतिनिधि से सीएमओ साहब के बराबर में आदेश प्राप्त करते दिख जाये तो बड़ी बात नहीं होंगी ,
स्टेट पब्लिक कमीशन से चयनित प्रादेशिक प्रशासनिक अधिकारी PCS ,PPS ( राजस्थान में RAS ) प्रोमोशन पाकर IAS ,IPS बन जाते हैं , और उसी कमीशन से चयनित M. O को प्रशासनिक सेवाओं के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता, क्योंकि प्रशासनिक क्षमता का विकास चिकित्सकों के सिलेबस और ट्रेनिंग का हिस्सा ही नहीं रहा , अधिकांश चिकित्सक, जब भी विभिन्न प्रकार के वित्तीय और प्रशासनिक प्रशिक्षण के लिए नामित किया जाता था तो जाते नही थे और बाबुओं से मिलकर अपना नाम कटवा लेते है , जिसके कारण सुंदर अवसर गवां देते रहे हैं , अब भी सुधर जाए तब भी ठीक है , कोई भी उनसे कम ग्रेड पे या समान ग्रेड पे का अधिकारी धमका कर चला जाता हैं ,
चिकित्सा अधिकारी राजपत्रित अधिकारी होने के बाबजूद बाबुओं से पूँछ-2 कर वित्तीय & प्रशासनिक निर्णय लेते हैं ,
राजपत्रित अधिकारी होने के बाबजूद आये दिन चिकित्सक पिटते है , बेज्जती करवाना तो अनिवार्य हिस्सा बन गया है , राजपत्रित अधिकारी होने के बाबजूद प्रशासनिक अधिकारियों की तरह न अच्छे आवास है , न सम्मान , न अर्दली , न ड्राइवर एवं अन्य सहायक , न ही अन्य कोई पॉवर , इसलिए जनता , मीडिया ,राजनेता , प्रशासनिक अधिकारी , पुलिस आपको चिकित्सा अधिकारी न मानकर सिर्फ प्राइवेट सेक्टर के डॉक्टर साहब के तुल्य मानती है , प्राइवेट में झोलाछाप भी डॉक्टर है , हमारा पैरामेडिकल स्टॉफ भी डॉक्टर है , चुनाव/ बोर्ड परीक्षाओं में सेक्टर मजिस्ट्रेट बना दिया जाता है तो स्थाई रूप से मजिस्ट्रेट पॉवर क्यों नहीं है ?
इसे MCI की दूरदर्शिता का अभाव न कहे तो क्या कहे जो 12th तक के सबसे मेधावी स्टूडेंट्स को संविधान की व्यवस्था में प्रशासनिक पॉवर वाले पदों के योग्य न बना पाई , अपितु 12th तक जो पीछे थे उनको उनके पद की पॉवर की वजह से सलाम करना पड़ता है l
यदि IMA मिशन मोड पर आज से संविधान को समझने के लिए CME या ज़ूम ट्रैनिंग आयोजित करें या यूट्यूब पर वीडियो देखकर संवैधानिक सिस्टम को समझने का प्रयास करेंगे तब 2025 तक उम्मीद कर सकते हैं कि चिकित्सक अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा कर पायेंगे , सम्मानित नागरिक का जीवन जी पायेंगे , विधायिका ( राज्यसभा सांसद मनोनीत करवाकर ) , कार्यपालिका (IMS कैडर बनवाकर) में अपनी स्थिति सुदृण कर पायेंगे ,