सरकारी अस्पताल में गये तो शिकायत थी
भीड़ भाड़ है ,धक्का मुक्की है,गंदगी है
यहां तो मुसीबतें घनघोर हैं।
पड़ौस के नर्सिंग होम में गए तो शिकायत थी
सुविधाएं कम हैं , मैनेजमेंट नही है
ये दिल तो चाहे कुछ और है।
आलीशान कॉर्पोरेट में गये तो शिकायत थी
महंगा है, मानवता नाम की चीज़ नही ,
ये तो साले सब चोर हैं।
सौ रुपये फीस वाले फैमिली डॉक्टर से शिकायत थी अज्ञानी है, इसे तो न कोई तौर तरीका, न कोई शऊर है,
हज़ार रुपये फीस वाले मॉडर्न डॉक्टर ने जब दस हज़ार की जांचे लिखी तो मुँह से निकला,
हाय !ये तो मुआ कमीशन खोर है।
झोलाछाप के हाथों मर भी गए तो कोई गिला नही,
पर जो किसी अस्पताल में खरोंच भी आई तो शिकायतों का दौर है।
डेंगू में प्लेटलेट बढ़ जाए तो बकरी के दूध की माया,
और जो कभी घट जाए , तो डॉक्टर को गरियाया।
बच्चे के जन्म पे डॉक्टर की फीस सुन के आंख भर आईं,
पर शिशु के जन्मोत्सव पे मदिरा में खूब दौलत उड़ाई।
बेटे की चाह में खुद अपनी कोख उज़ड़वाई,
और तुम्हारी विकृत सोच की सजा सोनोलोजिस्ट ने पाई।
संस्कृत के टीचर से क्या कभी किसी ने बच्चों को साइंस पढ़वाई?
पर तुमने देसी वैद्य से ज़िन्दगी
भर अंग्रेज़ी दवा हंसते हंसते खाई।
जब फिजिशियन ने लिखी वो ही दवाई
तो तुम्हें झट से साइड इफेक्ट्स की याद आई।
मेरे प्यारे देशवासियो ,
जिन ज़हीन चिकित्सकों को मारते हो,पीटते हो ,कोसते हो और जिनसे तुम रखते हो इतना द्वेष
तुम्हे पता है, इन्ही सपूतों का विदेशों में है दर्ज़ा विशेष!
ये न रहेंगे तो बहुत पछताओगे,
नीम हकीमों के हाथ अपनी इकलौती जान गँवाओगे।
सदियों से सुनते आए हैं, पहला सुख निरोगी काया,
पर तुम्हारी सरकारों को ये सत्य कभी समझ न आया।
नेताओं ,अफसरों ने घोटालों में इतना माल उड़ाया,
कि बजट में सेहत के लिए कभी बची ही नहीं माया।।
👆 this post fwd by a non medico friend. Well summarises today’s reality...
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