શુક્રવાર, 17 ઑગસ્ટ, 2018

The world without boundaries

'15 अगस्त स्पेसल पोस्ट'

मुझे देशद्रोही कहा जा सकता है, क्योंकि देशों में मेरा कोई भरोसा नहीं। न मुझे कोई देश है, न कोई परदेश है, मुझे यह सारी पृथ्वी अपनी मालूम होती है।

मैं किसी सीमा में बंधा नहीं हूं। मस्जिद भी मेरी है और मंदिर भी मेरा है और गिरजा भी और गुरुद्वारा भी। और राष्ट्रों में मेरा भरोसा नहीं है। मैं तो मानता हूं कि राष्ट्रों के कारण ही मनुष्य-जाति पीड़ित है। राष्ट्र मिट जाने चाहिए। हो चुके बहुत राष्ट्रगान, उड़ चुके बहुत झंडे, हो चुकीं बहुत मूढ़ताएं पृथ्वी पर, अब तो मनुष्य की एकता स्वीकार करो। अब तो एक पृथ्वी और एक मनुष्य.।

यह सारी पृथ्वी हमारी है। इसको खंडों में बांटकर हमने उपद्रव खड़ा कर लिया है। आज मनुष्य के पास ऐसे साधन मौजूद हैं कि अगर राष्ट्र मिट जायें, तो सारी समस्यायें मिट जायें। सारी मनुष्यता इकट्ठी होकर अगर उपाय करे तो कोई भी समस्या पृथ्वी पर बचने का कोई भी कारण नहीं है।
मगर पुरानी आदतें हैं। हमारा राष्ट्र-सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा…..! और इसी तरह की मूढ़ताएं और राष्ट्रों में भी हैं। उनको भी यही खयाल है। इन्हीं अहंकारों के कारण संघर्ष है। फिर संघर्ष और राष्ट्रों की सीमाओं के कारण मनुष्य की सारी शक्ति युद्धों में लग जाती है।

तुम्हें जानकर यह हैरानी होगी कि अब हमारे पास इतना युद्ध का सामान इकट्ठा हो गया है सारी दुनिया में, रूस और अमरीका में विशेषकर, कि एक-एक आदमी को एक-एक हजार बार मारा जा सकता है! हमारे पास एक हजार पृथ्वियों को नष्ट करने का साधन उपस्थित हो गया है; एक ही पृथ्वी है हालांकि। अंबार लगे जा रहे हैं अस्त्र-शस्त्रों के! और किसी भी दिन किसी एक पागल राजनीतिज्ञ की धुन और यह सारी पृथ्वी धूल का एक ढेर, राख का एक ढेर रह जायेगी।

🔥OSHO🔥
मरो हे जोगी मरो 06

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