સોમવાર, 25 જુલાઈ, 2016

Please do not through coins in rivers or drinking water sources

नदी में भी पैसे नहीं डालने चाहिए।*
इसी लिए लिखा गया ।

*"अर्थव्यवस्था पर भारी आस्था"* एक लेख ❗

हमारे देश में रोज न जाने कितनी रेलगाडियां न जाने कितनी नदियों को पार करती हैं और उनके यात्रियों द्वारा हर रोज नदियों में सिक्के फेकने का चलन । अगर रोज के सिक्को के हिसाब से गणना की जाये तो ये रकम कम से कम दहाई के चार अंको को तो पार करती होगी । सोचो अगर इस तरह हर रोज भारतीय मुद्रा ऐसे फेक दी जाती इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुँचता होगा ? ये तो एक अर्थशास्त्री ही बता सकता। लेकिन एक रसायनज्ञ होने के नाते ये जरूर लोगों को सिक्के की धातु के बारे में जागरूक कर सकता हूँ । *वर्तमान सिक्के 83% लोहा और 17 % क्रोमियम के बने होते है।* आप सबको ये बता दूँ कि 
*क्रोमियम एक भारी जहरीली धातु है।* 
*क्रोमियम दो अवस्था में पाया जाता है, एक Cr (III) और दूसरी Cr (IV)। पहली अवस्था जहरीली नही मानी गई बल्कि क्रोमियम (IV) की दूसरी अवस्था 0.05% प्रति लीटर से ज्यादा हमारे लिए जहरीली है। जो सीधे कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देती है।*
सोचो एक नदी जो अपने आप में बहुमूल्य खजाना छुपाये हुए है और हमारे एक दो रूपये से कैसे उसका भला हो सकता है ? 
*सिक्के फेकने का चलन तांबे के सिक्के से है।* 
एक समय मुगलकालीन समय में दूषित पानी से बीमारियां फैली थी तो, राजा ने प्रजा के लिए ऐलान करवाया कि हर व्यक्ति को अपने आसपास के जल के स्रोत या जलाशयों में तांबे के सिक्के को फेकना अनिवार्य कर दिया। क्योंकि *तांबा जल को शुद्ध करने वाली सबसे अच्छी धातु है।*
*आजकल सिक्के नदी में फेकने से उसके ऊपर किसी तरह का उपकार नही बल्कि जल प्रदूषण और बीमारियों को बढ़ावा दे रहे है।*
इसलिए आस्था के नाम पर भारतीय मुद्रा को हो रहे नुकसान को रोकने की जिम्मेदारी हम सब नागरिकों की है ।
देशहित में सहयोग करे 
*। जय हिन्द ।*
कृपया पुन: आपसे निवेदन है कि इसे आप अपने मित्रों, बच्चों तथा अशिक्षित  व्यक्तियों  को विशेष रूप से समझाएँ ताकि अज्ञानता में गलती न हो ।
धन्यवाद

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